वो...राहें आज भी है
आज क्यूँ सारा जहान सो गया
दूँ जिसे आवाज़ वो भी
कहीं खो गया
वक़्त कि बंदिशों में
बेबुनियादी इल्जामो में
दिल का हर रिश्ता
धराशाही हो गया
कागज़ पे लिख देने से
रिश्ते भी टूटते है .. ....
लबों की हँसीं
बन कर तितली उड़ चुकी है
वो सुनते नहीं हमारी
फिर भी हम उनके लिए
ही दुआ मांगते है
ना चाहते हुए भी
बिखर चुकी है इच्छाएं सारी
जो ज़माने के सितम है
वो ज़माना जाने
तुने दिए दिल पर
ज़ख्म इतने कि
हम अभी तक उसे ही
सिल रहे है ....
देते रहे वो अपनी
इच्छानुसार इलज़ाम यहाँ
और कबूल करने वाले
आज़ार (दुःख) भी नहीं दे सकते उन्हें
मुजरिम बुतों सी अब भी हूँ ....
तरसती है आँखे नम सी
अपने प्यार के दीदार के लिए
माना है हमने कि
गुज़र गए कारवां
अपनी मंजिल के लिए
पर तेरे इंतज़ार में
वो ..राहें आज भी है
वो...राहें आज भी है
(अंजु....(अनु)))
आज क्यूँ सारा जहान सो गया
दूँ जिसे आवाज़ वो भी
कहीं खो गया
वक़्त कि बंदिशों में
बेबुनियादी इल्जामो में
दिल का हर रिश्ता
धराशाही हो गया
कागज़ पे लिख देने से
रिश्ते भी टूटते है .. ....
लबों की हँसीं
बन कर तितली उड़ चुकी है
वो सुनते नहीं हमारी
फिर भी हम उनके लिए
ही दुआ मांगते है
ना चाहते हुए भी
बिखर चुकी है इच्छाएं सारी
जो ज़माने के सितम है
वो ज़माना जाने
तुने दिए दिल पर
ज़ख्म इतने कि
हम अभी तक उसे ही
सिल रहे है ....
देते रहे वो अपनी
इच्छानुसार इलज़ाम यहाँ
और कबूल करने वाले
आज़ार (दुःख) भी नहीं दे सकते उन्हें
मुजरिम बुतों सी अब भी हूँ ....
तरसती है आँखे नम सी
अपने प्यार के दीदार के लिए
माना है हमने कि
गुज़र गए कारवां
अपनी मंजिल के लिए
पर तेरे इंतज़ार में
वो ..राहें आज भी है
वो...राहें आज भी है
(अंजु....(अनु)))
इस कविता को दो दिन पहले पोस्ट किया गया था ....ब्लॉग कि समस्या के कारण पोस्ट पे लिखी गई सभी टिपण्णी यहाँ से गायब हो चुकी है....दोस्तों से अनुरोध कि हो सके तो १ बार फिर से टिपण्णी देने में सहयोग करे
28 comments:
"पर तेरे इन्तजार में वो..राहें आज भी" अनु बहुत ही मर्मस्पर्शी है आखिर की पंक्तियाँ. बिलकुल वैसे ही जैसे"किसी नजर को तेरा इन्तजार आज भी है".
tumhari her rachna mein ek ajeeb si kasak hoti hai...
waqt ki bandisho se
bebubiyado iljamo me
dil ka har rishta
dharashayee ho gaya....
- sahi kaha aapne...ye bandishe aise hi bahut kuchh kar deti hai...aur bebuniyad iljam ke karan to rishta kabhi majboot nahi ho pata...fir bhi rishta to rishta hai...:)
bahut pyari marmik aur bhawpurna rachna...:)
MAM BAHUT PYARI KAVTA LIKHI HAI APNE. DHANYWAAD. . . . .0. .JAI HIND JAI BHARAT
बहुत सुंदर लिखा आपने बस यु कहिये ---रिस्ते जो थे अजीज दिलो जान की तरहा टूटे है तेरे शहर मै ईमान की तरहा !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.आपके ब्लॉग पर पहली दफा आना हुआ.मन प्रसन्न हों गया आपकी जज्बाती रचना को पढकर.
आप मेरे ब्लॉग पर आयीं इसके लिए बहुत बहुत आभार.आपका ब्लॉग फालो कर लिया है.धन्यवाद .
तेरा इन्तजार
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
अनु जी ब्लॉग पर आने के लिए आभार |सुंदर कविता लिखने के लिए बधाई और शुभकामनाएं |
भावनाओं से ओत - प्रोत खुबसूरत रचना |
भावमयी प्रस्तुति.
'मुजरिम बुतों सी अब भी हूँ..,,
तरसती हैं आँखे नम सी
अपने प्यार के दीदार के लिए
माना है हमने कि
गुजर गए कारवां '
दिल को छूते शब्द.
आभार.
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति!
लिखती रहें आप बहुत अच्छा लिखतीं हैं!
टिप्पणियाँ गायब होने की प्रक्रिया ने सबको परेशान कर दिया है ..
बहुत अच्छी रचना
सुन्दर जज्बातों से सजी एक सशक्त रचना। आभार।
aap sabka shukriya....
अंजू जी अगर अप अनुरोध नहीं भी करती तो टिपियाते तो जरुर क्योंकि बात ही कुछ ऐसी है , बधाई
बढ़िया अभिव्यक्ति ....आप अपनी बात कहने में सफल हैं !
काश हम दूसरों को देखने के वजाय, अपने को पहचानने का प्रयत्न करें !
शुभकामनायें !
kaarwan to bante bigadte rahte hain....
sunder rachna....
प्यार और विछोह की
मार्मिक शब्दों में
प्रभावशाली अभिव्यक्ति ...
अंजू जी (अनु) आज पहली बार आप की कविता से रूबरू हो रहा हूँ...... सिर्फ ये कहना की आप अच्छा लिखती हैं.... कविता के साथ अन्याय ही होगा .... आप की ये कविता अगर दिल की कसौटी पर कस दी जाय तो .... अपने प्रकार की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में एक है.... बस थोड़ा सा...... निरन्तरता का अभाव दिखता हैं कही कही ...
बहुत खूब .. ये इश्क़ का दस्तूर है ... गहरे जज्बातों को व्यक्त किया है ...
विभिन्न व्यवधानों के बाद आज आपके पास तक पहुंची हूँ, इसके लिए क्षमा.
बहुत सुंदर लिखा है,
आज पहली बार आपके ब्लाग पे आना हुआ ...
बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप ...
इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये ...
बधाई के साथ शुभकामनाएं ।
बहुत अच्छी रचना बधाई
mere man ki bhavna ko padhne ke liye aap sakba aabhar............
RAHEN HAMESHA WAHI HOTI HAIN KARWANA GUZAR JATE HAIN
DHHOOL KE MANZAR BADI DUR AUR DER TAK NAZAR AATE HAIN
KUCH CHARE RAHTE HAIN JINDAGI BHAR KE LIYE SATH APNE NAHIN JO HO PATE
KUCH CHEHARE NA HOTE HUWE BHI SATH ZINDGI ME BAAR-2 YAAD AATE HAIN
भावों की सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर भावपूर्ण
सुन्दर प्रस्तुति.... खुबसूरत रचना
बेहतरीन अभिव्यक्ति..गहरे जज्बातों को व्यक्त किया है ...
सुंदर कविता लिखने के लिए बधाई
http://shayaridays.blogspot.com
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