प्यार की बलि
फिर रिश्तो की दुहाई
ये जात पात का अंतर
ये गरीब की रेखा
जो बांधी ..है
अमीरों ने ..
दिल से दिल का है
मिलन ...
फिर क्यों ये जिन्दगी है
इस तलवार की धार पे
याद आने पर बन गई
बीते लम्हों की कसक
मजबूरी का तो
बन गया है साया
मेरे दिल की दीवार पे
मैंने जो ख्याब बोया था
वो हकीकत में खिला नहीं
जिसे से इज़हार किया
उसने इस समाज के डर से
स्वीकार किया नहीं ...
बिन बोले तनहा रहीं
तड़पती रहीं खुद की
बेज़ुबानी पे.....
होगा दो दिलो का मेल
ये सोच भी दगा दे गई.....
आँखों की भाषा
भी खूब बरसी मेरे
इस व्यथित मन पे
लगी चोट मेरे दिले -अफ़गार पे
(((अनु ))))
दिले -अफ़गार ...(बेचैन दिल की तड़प )
फिर रिश्तो की दुहाई
ये जात पात का अंतर
ये गरीब की रेखा
जो बांधी ..है
अमीरों ने ..
दिल से दिल का है
मिलन ...
फिर क्यों ये जिन्दगी है
इस तलवार की धार पे
याद आने पर बन गई
बीते लम्हों की कसक
मजबूरी का तो
बन गया है साया
मेरे दिल की दीवार पे
मैंने जो ख्याब बोया था
वो हकीकत में खिला नहीं
जिसे से इज़हार किया
उसने इस समाज के डर से
स्वीकार किया नहीं ...
बिन बोले तनहा रहीं
तड़पती रहीं खुद की
बेज़ुबानी पे.....
होगा दो दिलो का मेल
ये सोच भी दगा दे गई.....
आँखों की भाषा
भी खूब बरसी मेरे
इस व्यथित मन पे
लगी चोट मेरे दिले -अफ़गार पे
(((अनु ))))
दिले -अफ़गार ...(बेचैन दिल की तड़प )
चित्र आभार......रोज़ी सचदेवा
33 comments:
बहुत मार्मिक प्रस्तुति
sach bahut badhiya bat...aur satya bat..
shabd shabd bol rahe hain
तड़फ मुखर है, धन्यवाद.
rashmi di ne sahi kaha....anju aapke blog ke post ki yahi khasiyat hai..apke har sabd mukhar hote hain...aur lagta hai har shabd jee raha ho........
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
Man ki pida ko darsati , marmik rachna hai. . . . Acha lagta hai apki rachna padhna .
Jai hind jai bharat
बेह्द मार्मिक चित्रण्।
बहुत ही मर्मस्पर्शी है आपकी कविता.
सादर
ye aankho ki basha bhi bahut kuch bolti hai .........
bahut khoob..
sundar rachna..
nice
खुबसूरत अहसास बधाई
सुन्दर रचना। दिल को छुती है।
आपकी इस कविता में प्रेम करने वाले ह्रदय की पीड़ा मुखरित हुई है.... समाज में प्रेम की जो परिणति हुई है उसका भी मार्मिक और संवेदनात्मक चित्रण है... बहुत खूबसूरत कविता... खुद को आपके दर्द से जोड़ते हुए शुभकामना !
gahre ehsas ke sath sunder prastuti......
बहुत ही अच्छा लिखा है ......साथ में चित्र .....क्या बात है प्रभाव और भी बढ़ा गया .......
बहुत सुन्दर लिखा है.एक-एक शब्द प्रभावी . .आभार
अनु जी,
आज भी प्यार का हश्र यही हो रहा है, और उससे पैदा हो रहे नए नए विकल्प. ये भावना तो सिर्फ दिल में पलती रहे और फिर दम तोड़ देती हैं लेकिन प्यार जो एक बार पलता है न कभी मारता नहीं है . भले जीवन के झंझावातों में वह पीछे हो जाये लेकिन अगर प्रिय मिल गया तो आँखें छलक ही आती हैं. .
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 24 - 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
samyik chintan par prayas sarhniya hai .
सुन्दर सम सामायिक कविता के लिए आभार
भारत में सदियों तक शिक्षा के दरवाजे सूद्रों और नारी के लिए खुले न थे। "मैं जो चाहूँ सो करूँ....मेरी मर्ज़ी" वाला सिद्धांत यहाँ प्रभावी रहा। यह सिद्धांत ताकत का परिचायक रहा है। आप इसे जंगलराज वाला सिद्धांत कह सकते हैं। ऋषियों ने इस सिद्धांत की व्याख्या "वीर भोग्या वसुंधरा" रूप में की है। वीरों ने आम आदमी को दास और नारियों को दासी समझा। दास और नारियाँ उनके लिए भोग की वस्तु थे, धन थे। जातिवाद, पर्दा-प्रथा, सती-प्रथा, बाल-विवाह, देवदासी-प्रथा जैसी अनेक प्रथाओं में नारी को जकड़ा गया। लोगों ने उनकी बातों को अपना आदर्श समझ कर अपना लिया। उसी मानसिकता के लक्षण हैं-’कन्या को कन्या नहीं दान की वस्तु समझा जाता है। जिस कन्या को माँ-बाप जन्म देते हैं वे उसे पराया धन मानने लगते हैं। दलितों और पिछड़ों की भाँति समाज के कमजोर वर्ग में नारियाँ भी आती हैं। माना कि मीडिया का कवरेज दास और दासी के रूप में नहीं होता। स्थिति आज भी वही है। जब भारी संख्या में आम आदमी प्रताड़ित किए जाते हैं, जलाए जाते हैं तो उसे दंगा कहा जाता है। जब केवल दासी (आम नारी) प्रताणित की जाती है, जलाई जाती है तो उसे दहेज-हत्या कह दिया जाता है। दहेज-हत्या-शोषण का घिनौना रूप है। आज भी बर्बर युग की बहुत गहरी जड़ें हमारे समाज में विद्यमान हैं। जिस देश का समाज जितना सभ्य होगा उस देश में लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली उतनी ही कामियाब होगी। आम नारी और आम पुरूष की आवाज सुनी जायगी। आनर-किलिंग वहाँ नहीं होती जहाँ सहिष्णुता चिर-स्थायी होती। जहाँ जाति, धर्म, भाषा तथा लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होता है।
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
दिल को छूती हुई,मार्मिक प्रस्तुति......
बहुत पसंद आई हमने आपको फौलो कर लिया है! !:) :)
भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
beautiful depiction of pain.
nice post !!
मर्मस्पर्शी कविता बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
बहुत ही सुंदर , सरल शब्दों का संयोजन इतना प्रभावी और मादक भी हो सकता है ...वाह । शुभकामनाएं दोस्त ..लिखती रहें
सरल शब्दों में सुन्दर रचना
wah jee wah....charcha manch pe bhi ho aap:)
charcha manch ka bahut bahut shukriya....
Jab main chhoti thi school ka rasta lamba tha
yaad hai ki halwai, toy shop,icecream,chandni chaat, kulfi kya nahi tha
ab'mobile shop,internet cafe aur maal hain . per wo shaan nahin.Jab main
chhoti thi Shayad duniya simat rahi hai
Shayad duniya simat rahi hai
Jab main chhoti thi shaamein bahut lambi hua karti thin
ghanton patang bazi, wo cycle race,wo chor-sipahi, gilli-danda
thak kar choor ho jaana
Ab shaam nahin hoti din dhalta hai aur sidhey raat hoti hai
Shayad waqt simat raha hai
Jab main chhoti thi tab dosti bahut gahri huaa karti thii
dinbhar tolli bana kar ghumna,doston ke ghar khanna khana
wo saath rona saath sona saath khaana
dosti kahaan hai ab? rahon par milte hain 'Bye' kertey huye badh jatey hain
Nay Saal , Janam-din Holi Diwali bas 'sms' aate hain
Shayad rishtey badal rahey hain
Jab main chhoti thi tab khel bhi ajeeb hua kerte they
chhpan-chhupai, chor-sipahi langri taang, tipi tipi top
ab internet, office, T.V. se fursat hi nahin milti
Shayad zindgi badal rahi hai
per sab se bara sach na badla jo 'shamshaan bhuumi' ke bahar board per
likha hai
''Manzil to yehi thii, bas zindgi guzar gayi aate aate...... SIYA
मित्रों चर्चा मंच के, देखो पन्ने खोल |
आओ धक्का मार के, महंगा है पेट्रोल ||
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बुधवारीय चर्चा मंच ।
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