Tuesday, August 16, 2011

ये जिंदगी भी ,रहस्य है

चित्र आभार .....रोज़ी सचदेवा

ये जिंदगी भी ,रहस्य है




मन की बेचैनी
घुटन है मन में
सच बोलने की ताकत
आते ही
चुप करवा दिया जाता है
ऐसा क्यूँ होता है
मै समझी नहीं आज तक
सच सुन कर हर कोई
क्यूँ दूर हो जाता है
सच अगर इतना ही कड़वा है
तो फिर ...कोई क्यूँ
किस उम्मीद से करीब आता है
किसको अपना समझे
किसको बेगाना
अपने भी सच के सामने
बेगाने नज़र आते है

कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं
हर शाम
दर्द की फसल उगाती हूँ मैं

खुद को तराशती हूँ मैं
जर्रा जर्रा कतरा` कतरा
ये जिंदगी भी ,रहस्य है
मेरे लिए
मन को उधेड़ती हुई

कहाँ जा रही हूँ..

(अनु )

32 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

हाँ जी!
जिन्दगी वास्तव में रहस्य है
और इस रहस्य को आपने शब्दों में
बहुत सुन्दर तरीके से बाँधा है!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

yahi to jindagi hai, yahi to jindagi ka rahasya hai...!!
fir bhi jeena hai...!!

Anonymous said...

bilkul sahi jaa rahi ho anu ji

दीपक बाबा said...

मन की परते भी प्याज की तरह होती हैं...... जितनी उतारो उतनी बार नयी परत नज़र आती है .......

वैसे बेहतरीन कविता है.......

अभिषेक मिश्र said...

इस रहस्य ने कई जिंदगियों को उलझा रखा है.

Yashwant R. B. Mathur said...

आपने सही कहा है।

सादर

वीना श्रीवास्तव said...

जिंदगी तो अनबूझ पहेली है...
बहुत अच्छा लिखा है....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बढ़िया अभिव्यक्ति....
सच कहा जीवन एक रहस्य है...
और मेरे ख़याल से उस रहस्य को सार्थक ढंग से जानने का प्रयास करना ही "जीना" है...
सादर...

Maheshwari kaneri said...

जिंदगी तो अनबूझ पहेली है...सही पर सुन्दर अभिव्यक्ति है......

Dorothy said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

दिलबागसिंह विर्क said...

sunder kvita

!!अक्षय-मन!! said...

kuch sawal anbujhe reh jate hai bahut accchar likha hai badiya hai :)

DR. ANWER JAMAL said...

ये जिंदगी भी ,रहस्य है
मेरे लिए

--------

बहुत अच्छा लिखा है...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं

वाकई यही जीवन-चक्र है, एक जाल मकड़ी के जाल जैसा, जिसमें वह ता’उम्र उलझी रहती हे...वेरी नाइस पोस्ट दार्शनिक पुट लिए

Rakesh Kumar said...

अनु जी आपकी मेल से मेरा आपकी इस पोस्ट पर
आना हुआ.आपकी पोस्ट पढकर मन भाव विभोर हो गया.
आपके शब्द और भाव दिल को छूते हैं.

कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं
हर शाम
दर्द की फसल उगाती हूँ मैं
खुद को तराशती हूँ मैं

वाह! तराशने का निराला अंदाज है आपका.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत गहन अभिव्यक्ति ... अच्छी प्रस्तुति

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!!

amrendra "amar" said...

♥ very nice bahut umda abhivyakti ♥

Sawai Singh Rajpurohit said...

सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

Anu ji
hamesha ki tarah is baar bhee khoobsoorat abhivyakti

Rajiv said...

"ये जिंदगी भी,रहस्य है
मेरे लिए
मन को उधेड़ती हुई
कहाँ जा रही हूँ."
इस उलझन में ही जीवन का रहस्य छिपा है.अपने-आप को तलाशती कविता.

रेखा श्रीवास्तव said...

bahut sundar , man ko chhoo gayi kavita.

shuk-riya said...

अशोक अरोरा .....http://shuk-riya.blogspost.com/

ज़िन्दगी की भी अज़ब कहानी हैं......
इसकी बातें ये यही जाने....
हम सब तो अज्ञानी है....
... अनु जी एक मर्मस्पर्शी रचना जो हम सब को मजबूर करती है...सोचने पर....

दिगम्बर नासवा said...

Jindagi aisi hi hoti hai ... khud ko ehsaas nahi hone deti kahaan jaa rahi hai ... lajawaab rachna hai ....

Satish Saxena said...

जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !

डॉ. मनोज मिश्र said...

आप को जनमदिन पर बहुत-बहुत शुभकामनायें.

smshindi By Sonu said...

जनमदिन की बधाईयाँ.

smshindi By Sonu said...

जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ ...शुभकामनायें

सुनील गज्जाणी said...

pranam !
behad behad sunder abhivyakti , man ko chhune wale bhaav , badhai .
saadar

Sawai Singh Rajpurohit said...

जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ/शुभकामनायें !

Dr.Sushila Gupta said...

मन की बेचैनी
घुटन है मन में
सच बोलने की ताकत
आते ही
चुप करवा दिया जाता है
ऐसा क्यूँ होता है
मै समझी नहीं आज तक
सच सुन कर हर कोई
क्यूँ दूर हो जाता है
सच अगर इतना ही कड़वा है

ha sahee kaha aapne, koi sach nahee sunana chahta. sirf dikhawa shesh hai..thanks sach likhane ke lie.

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Man ki beecheni
Ghutan he ma me,

Kisko pana samjhe ,
Kisko begana .

Kitni gahri Soch he
Antar man ki vyatha bahut hi sundar tarike se vyakt kar di aap ne
Sach har rachna pahle baali se behtar or sateek
Man ki beecheni
Ghutan he ma me,

Kisko pana samjhe ,
Kisko begana .

Kitni gahri Soch he
Antar man ki vyatha bahut hi sundar tarike se vyakt kar di aap ne
Sach har rachna pahle baali se behtar or sateek