चित्र आभार .....रोज़ी सचदेवा
ये जिंदगी भी ,रहस्य है
मन की बेचैनी
घुटन है मन में
सच बोलने की ताकत
आते ही
चुप करवा दिया जाता है
ऐसा क्यूँ होता है
मै समझी नहीं आज तक
सच सुन कर हर कोई
क्यूँ दूर हो जाता है
सच अगर इतना ही कड़वा है
तो फिर ...कोई क्यूँ
किस उम्मीद से करीब आता है
किसको अपना समझे
किसको बेगाना
अपने भी सच के सामने
बेगाने नज़र आते है
कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं
हर शाम
दर्द की फसल उगाती हूँ मैं
खुद को तराशती हूँ मैं
जर्रा जर्रा कतरा` कतरा
ये जिंदगी भी ,रहस्य है
मेरे लिए
मन को उधेड़ती हुई
कहाँ जा रही हूँ..
(अनु )
32 comments:
हाँ जी!
जिन्दगी वास्तव में रहस्य है
और इस रहस्य को आपने शब्दों में
बहुत सुन्दर तरीके से बाँधा है!
yahi to jindagi hai, yahi to jindagi ka rahasya hai...!!
fir bhi jeena hai...!!
bilkul sahi jaa rahi ho anu ji
मन की परते भी प्याज की तरह होती हैं...... जितनी उतारो उतनी बार नयी परत नज़र आती है .......
वैसे बेहतरीन कविता है.......
इस रहस्य ने कई जिंदगियों को उलझा रखा है.
आपने सही कहा है।
सादर
जिंदगी तो अनबूझ पहेली है...
बहुत अच्छा लिखा है....
बढ़िया अभिव्यक्ति....
सच कहा जीवन एक रहस्य है...
और मेरे ख़याल से उस रहस्य को सार्थक ढंग से जानने का प्रयास करना ही "जीना" है...
सादर...
जिंदगी तो अनबूझ पहेली है...सही पर सुन्दर अभिव्यक्ति है......
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
sunder kvita
kuch sawal anbujhe reh jate hai bahut accchar likha hai badiya hai :)
ये जिंदगी भी ,रहस्य है
मेरे लिए
--------
बहुत अच्छा लिखा है...
कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं
वाकई यही जीवन-चक्र है, एक जाल मकड़ी के जाल जैसा, जिसमें वह ता’उम्र उलझी रहती हे...वेरी नाइस पोस्ट दार्शनिक पुट लिए
अनु जी आपकी मेल से मेरा आपकी इस पोस्ट पर
आना हुआ.आपकी पोस्ट पढकर मन भाव विभोर हो गया.
आपके शब्द और भाव दिल को छूते हैं.
कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं
हर शाम
दर्द की फसल उगाती हूँ मैं
खुद को तराशती हूँ मैं
वाह! तराशने का निराला अंदाज है आपका.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
बहुत गहन अभिव्यक्ति ... अच्छी प्रस्तुति
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!!
♥ very nice bahut umda abhivyakti ♥
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
Anu ji
hamesha ki tarah is baar bhee khoobsoorat abhivyakti
"ये जिंदगी भी,रहस्य है
मेरे लिए
मन को उधेड़ती हुई
कहाँ जा रही हूँ."
इस उलझन में ही जीवन का रहस्य छिपा है.अपने-आप को तलाशती कविता.
bahut sundar , man ko chhoo gayi kavita.
अशोक अरोरा .....http://shuk-riya.blogspost.com/
ज़िन्दगी की भी अज़ब कहानी हैं......
इसकी बातें ये यही जाने....
हम सब तो अज्ञानी है....
... अनु जी एक मर्मस्पर्शी रचना जो हम सब को मजबूर करती है...सोचने पर....
Jindagi aisi hi hoti hai ... khud ko ehsaas nahi hone deti kahaan jaa rahi hai ... lajawaab rachna hai ....
जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
आप को जनमदिन पर बहुत-बहुत शुभकामनायें.
जनमदिन की बधाईयाँ.
जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ ...शुभकामनायें
pranam !
behad behad sunder abhivyakti , man ko chhune wale bhaav , badhai .
saadar
जन्मदिन की हार्दिक बधाइयाँ/शुभकामनायें !
मन की बेचैनी
घुटन है मन में
सच बोलने की ताकत
आते ही
चुप करवा दिया जाता है
ऐसा क्यूँ होता है
मै समझी नहीं आज तक
सच सुन कर हर कोई
क्यूँ दूर हो जाता है
सच अगर इतना ही कड़वा है
ha sahee kaha aapne, koi sach nahee sunana chahta. sirf dikhawa shesh hai..thanks sach likhane ke lie.
Man ki beecheni
Ghutan he ma me,
Kisko pana samjhe ,
Kisko begana .
Kitni gahri Soch he
Antar man ki vyatha bahut hi sundar tarike se vyakt kar di aap ne
Sach har rachna pahle baali se behtar or sateek
Man ki beecheni
Ghutan he ma me,
Kisko pana samjhe ,
Kisko begana .
Kitni gahri Soch he
Antar man ki vyatha bahut hi sundar tarike se vyakt kar di aap ne
Sach har rachna pahle baali se behtar or sateek
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