(ऐ-री-सखी कविता संग्रह की ही एक कविता )
ऐ-री-सखी
तू ही बता
मैं कब तक तन्हा रहूँगी
तब!
ऐ-री-सखी
तू ही बता
मैं कब तक तन्हा रहूँगी
कब!
मेरे मन की चौखट पे
धूप सी इस जिंदगी में
कोई आएगा
जिस संग मैं
साजन गीत गाऊँगी
साजन गीत गाऊँगी
तब!
बसंत के आने पर ,
मेरी जिंदगी की भौर में
तभी तो बहार आएगी
जो मल्हार का रूप धर
उस संग प्यार के नगमे गाएगी
मेरी जिंदगी की भौर में
तभी तो बहार आएगी
जो मल्हार का रूप धर
उस संग प्यार के नगमे गाएगी
हम दोनों मिल कर खेलेंगे ,
खेल जीवन-संगीत का
बन जाएँगे अफसाने ,
हम दोनों के
जब दो दिल मिल जाएँगे
बन जाएँगे अफसाने ,
हम दोनों के
जब दो दिल मिल जाएँगे
देख कर रूप प्यार का
सूने जीवन में भी
गुलशन भी खिल जाएँगे
जब आँखे कुछ कहेंगी
ख़ामोशी और बढ़ जाएगी
एक संगीत का सुर मिल जाएगा
तब,तन मन गीत सुनाएगा
सूने जीवन में भी
गुलशन भी खिल जाएँगे
जब आँखे कुछ कहेंगी
ख़ामोशी और बढ़ जाएगी
एक संगीत का सुर मिल जाएगा
तब,तन मन गीत सुनाएगा
मोहब्बत में
है ये मादक मदिरा
मद में करे मदहोश जो
प्यार में
है ये मादक मदिरा
मद में करे मदहोश जो
प्यार में
सरस साथ बन साजन
खुद को भी लहराए वो
खुद को भी लहराए वो
कैसा पुनीत अवसर होगा
जब सावन ही मेरे
भीतर होगा
मैं भी छम छम नाचूँगी
जब सावन ही मेरे
भीतर होगा
मैं भी छम छम नाचूँगी
गीत प्यार के गाऊँगी
खुशबू बन महकुंगी और
सखियाँ चुपके से आएँगी
मुझे छेड़-छेड़ कर जाएँगी
सखियाँ चुपके से आएँगी
मुझे छेड़-छेड़ कर जाएँगी
तब,मैं भी दूर खड़ी मुस्कुराऊँगी
जब बढ्ने लगेगी मेरे दिल की ये धड़कनें
तो,उस संग प्यार को ओर बढ़ाऊँगी
तो,उस संग प्यार को ओर बढ़ाऊँगी
पर, आने पे उसके !
वो कब तक रहेगा पास मेरे
कब तक रोकेगी उसे
मेरी ये आस रे ,
वो कब तक रहेगा पास मेरे
कब तक रोकेगी उसे
मेरी ये आस रे ,
मेरी शोख अदाएँ
कब तक उसके नैनों से
बातें कर पाएँगी
कब तक उसके नैनों से
बातें कर पाएँगी
मैं,शरमायीं अलसाई आँखों को ,
कब तक नीचे रख पाऊँगी
कब तक मोहिनी बन
कब तक नीचे रख पाऊँगी
कब तक मोहिनी बन
मैं,मोहब्बत में उसे रिझा पाऊँगी
बोल ना! ऐ-री-सखी,
मैं कब तक ,
अपने ही प्यार के ,
अपने ही प्यार के ,
यूँ ही सपने सजा
गीत अकेले-अकेले गाऊँगी ||
गीत अकेले-अकेले गाऊँगी ||
27 comments:
bahut sundar ...khud se khud hi baten karna kai bar bada achha lagta hai .....
वासंती के रागों की धुन है यह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (23-04-2014) को जय माता दी बोल, हृदय नहिं हर्ष समाता; चर्चा मंच 1591 में अद्यतन लिंक पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
साधू साधू/ प्रेम में डूबी../ प्रेमपूर्ण रचना ...
तन्हाई में मौन बैठी इस कविता को पढ़कर भाव मुखर हुए...भावभीनी रचना
http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/04/blog-post_23.html
बढ़िया प्रस्तुति , अनु जी धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) - भाग - ८
~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )
कैसा पुनीत अवसर होगा
जब सावन ही मेरे
भीतर होगा
मैं भी छम छम नाचूँगी
गीत प्यार के गाऊँगी.... waah..bohat hi bhavpoorn prastuti... laga jaise mano meri hi dil ki batein hoN
प्रेम सिक्त भावों का राग । बहुत सुन्दर ।
बहुत ही मर्मस्पर्शी..
http://prathamprayaas.blogspot.in/-सफलता के मूल मन्त्र
सखियों की सुंदर गुफ्तगू :)
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
मन के एकाकी भावों को शब्दों का रूप दे दिया आपने ... बहुत ही गहरी ... संवेदनशील रचना ...
अनुपम भाव संयोजन .....
बहुत सुन्दर....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है अनु ! मंगलकामनाएं . …
adutiya- ***
प्यारी...बहुत प्यारी रचना |
अनु
बहुत सुंदर गीत....
सुँदर
बहुत खूब....
भरी भीड़ में अकेला खड़ा इंसान
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
प्रेम रस में पगी सुंदर कविता..
बहुत वक़्त के बाद लिखने और ब्लॉग पर पोस्ट करने का मौका मिला...आप सबके स्नेह और कमेंट्स के लिए सादर आभार
बहुत वक़्त के बाद लिखने और ब्लॉग पर पोस्ट करने का मौका मिला...आप सबके स्नेह और कमेंट्स के लिए सादर आभार
बेहतरीन।
एक संगीत का सुर मिल जाएगा
तब,तन मन गीत सुनाएगा
हर अल्फाज़ में एक रूहानी एकाकीपन .......
पुर-सुकून तलाश की ओर .......
Post a Comment