Tuesday, April 22, 2014

ऐ-री-सखी (अकेले मन का द्वंद्ध )

(ऐ-री-सखी कविता संग्रह की ही एक कविता )

ऐ-री-सखी
तू ही बता 
मैं कब तक तन्हा रहूँगी  


कब! 
मेरे मन की चौखट पे 
धूप सी इस जिंदगी में 
कोई आएगा 
जिस संग मैं
साजन गीत गाऊँगी 

तब!
बसंत के आने पर  ,
मेरी जिंदगी की भौर में
तभी तो बहार आएगी
जो  मल्हार का रूप धर
उस संग प्यार के नगमे गाएगी
हम दोनों मिल कर खेलेंगे  ,
खेल जीवन-संगीत का
बन जाएँगे अफसाने ,
हम दोनों के
जब दो दिल मिल जाएँगे  

देख कर रूप प्यार का
सूने जीवन में भी
गुलशन भी खिल जाएँगे
जब आँखे कुछ कहेंगी
ख़ामोशी और बढ़ जाएगी
एक संगीत का सुर मिल जाएगा
तब,तन मन गीत सुनाएगा


मोहब्बत में
है ये मादक मदिरा
मद में करे मदहोश जो
प्यार में 
सरस साथ बन साजन
खुद को भी लहराए वो 


कैसा पुनीत अवसर होगा
जब सावन ही मेरे
भीतर होगा
मैं भी छम छम नाचूँगी 
गीत प्यार के गाऊँगी

खुशबू बन महकुंगी और
सखियाँ चुपके से आएँगी
मुझे छेड़-छेड़ कर जाएँगी


तब,मैं भी दूर खड़ी मुस्कुराऊँगी 
जब बढ्ने लगेगी मेरे दिल की ये धड़कनें
तो,उस संग प्यार को ओर बढ़ाऊँगी   



पर, आने पे उसके !
वो कब तक रहेगा पास मेरे
कब तक रोकेगी उसे
मेरी ये आस रे ,

मेरी शोख अदाएँ
कब तक उसके नैनों से
बातें कर पाएँगी 


मैं,शरमायीं अलसाई आँखों को ,
कब तक नीचे रख पाऊँगी
कब तक मोहिनी बन 
मैं,मोहब्बत में उसे रिझा पाऊँगी 


बोल ना! ऐ-री-सखी,
मैं कब तक ,
अपने ही प्यार के ,
यूँ ही सपने सजा
गीत अकेले-अकेले गाऊँगी ||

27 comments:

Dr.NISHA MAHARANA said...

bahut sundar ...khud se khud hi baten karna kai bar bada achha lagta hai .....

प्रतिभा सक्सेना said...

वासंती के रागों की धुन है यह!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (23-04-2014) को जय माता दी बोल, हृदय नहिं हर्ष समाता; चर्चा मंच 1591 में अद्यतन लिंक पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Arun sathi said...

साधू साधू/ प्रेम में डूबी../ प्रेमपूर्ण रचना ...

मीनाक्षी said...

तन्हाई में मौन बैठी इस कविता को पढ़कर भाव मुखर हुए...भावभीनी रचना

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/04/blog-post_23.html

आशीष अवस्थी said...

बढ़िया प्रस्तुति , अनु जी धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन - घरेलू उपचार ( नुस्खे ) - भाग - ८
~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )

Aparna Bose said...

कैसा पुनीत अवसर होगा
जब सावन ही मेरे
भीतर होगा
मैं भी छम छम नाचूँगी
गीत प्यार के गाऊँगी.... waah..bohat hi bhavpoorn prastuti... laga jaise mano meri hi dil ki batein hoN

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्रेम सिक्त भावों का राग । बहुत सुन्दर ।

richa shukla said...

बहुत ही मर्मस्पर्शी..
http://prathamprayaas.blogspot.in/-सफलता के मूल मन्त्र

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सखियों की सुंदर गुफ्तगू :)

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...

दिगम्बर नासवा said...

मन के एकाकी भावों को शब्दों का रूप दे दिया आपने ... बहुत ही गहरी ... संवेदनशील रचना ...

सदा said...

अनुपम भाव संयोजन .....

कौशल लाल said...

बहुत सुन्दर....

Satish Saxena said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है अनु ! मंगलकामनाएं . …

Aditya Tikku said...

adutiya- ***

ANULATA RAJ NAIR said...

प्यारी...बहुत प्यारी रचना |

अनु

रश्मि शर्मा said...

बहुत सुंदर गीत....

अभिषेक शुक्ल said...

सुँदर

कपिल वर्मा said...

बहुत खूब....
भरी भीड़ में अकेला खड़ा इंसान

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

Anita said...

प्रेम रस में पगी सुंदर कविता..

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत वक़्त के बाद लिखने और ब्लॉग पर पोस्ट करने का मौका मिला...आप सबके स्नेह और कमेंट्स के लिए सादर आभार

Anju (Anu) Chaudhary said...

बहुत वक़्त के बाद लिखने और ब्लॉग पर पोस्ट करने का मौका मिला...आप सबके स्नेह और कमेंट्स के लिए सादर आभार

धीरेन्द्र अस्थाना said...

बेहतरीन।

Fatan said...

एक संगीत का सुर मिल जाएगा
तब,तन मन गीत सुनाएगा


हर अल्फाज़ में एक रूहानी एकाकीपन .......
पुर-सुकून तलाश की ओर .......