टिमटिमाती रोशनियाँ
और जंगल की आग का
धुआँ
सड़कों से गुजरती गाड़ियाँ
और इन सबका शोर
उसके कानों में
फुसफुसाता है
अपने व्यवस्ता की दास्तां
एक अजीब सा शोर
एक अजीब सी घुटन
उसकी आँखों में काँपती है
और फिर एक ऊँची आवाज़
ज़ार-ज़ार
खड़खड़ाती सी
उसे भेदती हुई
आर-पार हो जाती है
उसे अकेला कर देने के लिए
बस इतना ही काफी है ||
--
अंजु चौधरी (अनु )
15 comments:
अजीब सा शोर हर तरफ फैलता हुआ गूँजता हुआ ............. कान फट न जाए :)
बढ़िया !!
Jub dil kampkapata he kisi ke hukm se,tou apne pan ka ehsas mun me ubhar ban ke baki sub shorr bhula deta hai
मर्मस्पर्शी.....
बहुत सुन्दर ..मर्मस्पर्शी.....
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25.04.2014) को "चल रास्ते बदल लें " (चर्चा अंक-1593)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
बहुत सुन्दर....
उम्दा लिखा है.
बढ़िया प्रस्तुति , सुंदर शब्द अनुभूति , अनु जी धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ सच्चा साथी ~ ) - { Inspiring stories -part - 6 }
~ ज़िन्दगी मेरे साथ -बोलो बिंदास ! ~( एक ऐसा ब्लॉग जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता हैं )
bahuut achche annu
भावपूर्ण रचना, बधाई.
शोर में भी आज मिलता है अकेलापन । इस व्यथा को बखूबी उकेरा है
very beautifully expressed...
सब कुछ करने के बाद अगर अपनों का साथ न मिले तो कुछ भी करना व्यर्थ ही लगता है ... मर्म को छूती हुई ...
आज के यथार्थ को व्यक्त करता हुआ कथ्य..
बहुत ही खूबसूरत कविता
Post a Comment