Saturday, December 27, 2008
~~~~पहला पन्ना ~~~~~
क्यूँ क्या शर्म नहीं आती उन्हें इन शबदो से साफ़ जाहिर है समाज मे बात फ़ैल गयी है चोकना सवाभिक है ऐसे शब्दों से घरवाले भी ''प्यार''शब्द सुनते ही ...''प्यार''एक अनुभूति है जो खुद से खुद का व्यक्तिगत परिचय व एह्स्सास कराती है यह रूप गुण नहीं देखता वह ऐसा एह्स्सास कराती है .जिसके लिए शब्दों का उचारण भी पूर्ण रूप से नहीं देखती यह एक अपना बंधन स्थापित करता है ''प्यार''का बंधन इसे किसी की स्वीकृति का इंतजार है तो एक दुसरे का और सब बेकार है प्यार करने वाले इस अहसास को महसूस कर सकते है !
बड़ी कटनाइयो से यह अह्स्सास एक दुसरे का होता है और समाज की बेडियों उफ़ यह दुःख सुख का अनुभव दिल की गहराइयो को एक नया मार्ग दिखता है जहाँ हम सब पथ छोड़ कर चलते है उससे सारे भेद भाव मिटा देते है उसे अपना राज ,दिल के दुःख सुख बाते सब अपने प्रिये को बता देते है व कुछ क्षण मे उसे खुदा समझने लगते है !
~~~~~दूसरा पन्ना~~~~~
एक अनजान व्यक्ति एक अनजान व्यक्तित्व दे मिलता है जब उससे प्यार की भावना उत्पन होती है तो वह प्रेमी ,प्रियसी से ना जाने क्या-क्या आशाओं को बाँध लेते है वह एक अनजान बंधन के घेरे मे उनका प्यार परवान चढ़ता है और एक ऐसा समय भी आता है वह अनजान व्यक्ति केवल अपना बन जाता है यह आपके मन मंदिर मे खुद बे खुद अंकुर के रूप मे फूटता है वह आपसी समझदारी से बढ़ता ही चला जाता है इसकी कोई सीमा नहीं ना ही इसकी गहराइयो तक पहुँच पाया है मन मस्तिक मे हमारी भावनाओं मे उसके प्रवेश होते ही हम अपने आप मे एक अनूठा आकर्षण पाते है और यह आकर्षण ही दिल की गहराइयो से पनपने वाली मीठी अनुभूति है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है और वह है ''प्यार ,इश्क ,मोहब्बत,LOVE....आपको समर्पित मेरा भविषय
~~~~~पवन अरोडा~~~~
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