चित्र आभार ....रोज़ी सचदेवा ....................
मै ....और .....तुम
मैंने अपने आप को
शब्दों में ढाल लिया
खुद को मायाजाल
में फांस लिया
देख और समझ
कर भी सच्चाई को
मुंह मोड़ लिया ...खुद के
जीने के लिए ...
अस्तित्व की लडाई में
दिल पर नश्तर हज़ार लिए
******
जब भी मौका मिला तुम्हे
नहीं चुके तुम मेरा शरीर
रगड़ने से
अब खुद कि आँखों से वो
भोलापन कहाँ गया ?????
समय बीता ...बीते बसंत हज़ार
फिर भी क्यों ये जीवन है
कुछ है आधा अधूरा सा
क्यों मिलती है इस में
खाली और अपूर्ण जीवन
की झलक बार बार
तुम पल पल चुकते गए
मै वक़्त दर वक़्त
सागर बनती गई
मन की तुम्हारी विकृतियाँ
मुझ में आ आ कर
मिलती गई
अब काल्पनिक जीवन की
तस्वीरों के साये में
कटने लगे है ...
मेरे ये दिन और रात
मिट गया मुझ में '' मै ''
होने का एहसास
पर...तुम ''तुम'' बने रहे ........
पर...तुम ''तुम'' बने रहे ........
((अनु...))
32 comments:
मिट गया मुझ में 'मैं'
होने का अहसास
पर ..तुम "तुम" बने रहें ...
पर ..तुम "तुम" बने रहें....
आपके कवि हृदय से उमड़ी भावों की सरिता दिल पर टक्कर मारती है.
सुन्दर अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर भी आकर अपने सुविचारों की कुछ छटा बिखेरियेगा.
मिट गया मुझमें में मै .........खूबसूरत अहसास बधाई
bade hi gahre gahan ehsaas
very ardent and vehement expressions !!
मन में चल रहे ताने बाने को आपने बहुत ही सुन्दर ढंग से वस्त्र बनाकर सिल दिया है!
bahut hi gehan vichar!
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.
वाह ! बेहद खूबसूरत अहसास को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...
सच कहा तुम तुम बने रहे और मै , मै ना रही…………।सुन्दर भावाव्यक्ति।
बहुत सुंदर अहसास,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
गहरे एहसास के साथ बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
bahut sundar tareeke se Anu ji aapne dil kee kashak ko lekhni se shabd ke bhaavon me badal diya... umda... aapka mere blog Amritras me swagat hai...
तुम के दंश को गहरे तक झेला है इस इस कविता में ... बहुत खूब ..
जब भी मौक़ा मिला तुम्हें
नहीं चुके तुम मेरा शरीर
नोचने से ....
क्रूर मनुष्यता का मासूम स्त्री के प्रति व्यवहार
और मन के अजब ताने-बाने को सहेजे हुए
एक अच्छी कृति निर्मित की है....
तुम..... तुम बने रहे !!
अनु जी
वंदना जी के माध्यम से आपके यहाँ आना हुआ और सच कहूँगा व्यर्थ नहीं रहा, आपका फोलोवर बन रहा हूँ तो अब आता रहूंगा आप को पढने!
आपका भी स्वागत है मेरे ब्लॉग पर, आशा करता हूँ आप आकर अनुग्रहीत करेंगी!
सुरेन्द्र "मुल्हिद"
mit gaya mujhme "main"...
par tum "tum" hi bane rahe...:)
kya kahun....bahut hi dard dikh gaya...sirf main aur tum jaise do sabdo se hi...!!
tumhari rachna...me alag si pahchaan hai...!!
lekin kuchh shuru ke shabd janche nahi ...unhe kuchh aur tarike se kaha ja sakta tha....
please anyatha na lena...!!
mukesh mai aage se koshish karugi ki jo thik shabd ho wahi istemaal karu
बेहद खूबसूरत एहसास...
namaskaar !
behad gahree aur khuli bebaaki se apni apni abhivyakti pradan ki hai , main aur tum se simtte hue magar jitna simte utnaa hi ubhar ke saamane aayi sunder prastuti , badhai .
saadar
बहुत भावपूण रचना है...एक अनजाने दर्द का अहसास...
आदरणीया अंजु जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
मन के कोमल भावों की सुंदर प्रस्तुति है -
तुम पल पल चुकते गए
मै वक़्त दर वक़्त
सागर बनती गई
आपके ब्लॉग पर लगे चित्र भी बहुत ख़ूबसूरत और आपकी कलाप्रियता के परिचायक हैं …
आपको हृदय सेबधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अनु जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
प्रभावी अभिव्यक्ति ........
किसी ने कहा है--
जो चीज इकहरी थी वह दोहरी निकली
सुलझी हुई जो बात थी उलझी निकली
सीप तोड़ी तो उसमें से मोती निकला
मोती तोड़ा तो उसमें से सीप निकली।
आभार
aap sab ka shukriya....meri kavita ko pasand karne ke liye...
आदरणीय अनु जी
एक गहरा चिंतन प्रस्तुत किया है आपने इस कविता में ..जीवन और अस्तित्व को प्रकट करती रचना हमारे सामने इन दोनों महता को प्रस्तुत करती है ....आपका आभार
वाह! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
नारी मन को समझने के लिए एक दस्तावेज़ है यह कविता... 'तुम' का 'तुम' बने रहना स्त्री और पुरुष के बीच मनोवैज्ञानिक अंतर की ओर इशारा कर रहा है.. बेहद शसक्त अभिव्यक्ति...
इस रचना में भावना का वैसा ही समन्वय |
तुम - तुम ही बने रहे , तुम - तुम ही बने रहे |
सुन्दर रचना |
kewal ram ji...nilesh ji...arun ji...minakshi ji
bahut bahut shukriya meri kavita ko pasand karne ke liye
Mai waqt ke santh sagar banti gaai
bahut gahrai he aap ki baat me bas itna hi kaha ja sakta he ki adbhut adbhut adbhut.........
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