Saturday, December 27, 2008

क्यों तूने मेरे सुने दिल पे दस्तक दी ..............


क्यों तूने मेरे सुने दिल पे दस्तक दी ....
क्यों मेरे सपनो में आके ...झंझोर मुझे ...
क्यों मेरे इते करीब आने लगे हो ..
क्यों मेरे ख्याबो मे में आके ..जगाने लगे हो .....
क्यों तूने मेरे सुने दिल पे दस्तक दी ....
पास आ नहीं सकती ,
दूर मे जा नहीं सकती ,
याद तुम्हे कर नहीं सकती ,
दिन के तनहा लम्हों में ,
यादो से तुम्हारी मे दूर जा नहीं सकती ,
क्यों तूने मेरे सुने दिल पे दस्तक दी ..........
क्यों मे सपने सजाने लगी हू,
ये भी जानती हू कि ,नहीं होंगे वो पूरे..
पाने कि तुम्हे सोच नहीं सकती ,
तुम्हे खोने के डर से तड़प जाती हू,
तुम साथ हो मेरे ,इस ख्याल से रात भर जागती हू ,
पर .......
आँख खुलने पे ...मेरी कल्पना कि दुनिया से
दूर चले जाते हो ,
क्यों तूने मेरे सुने दिल पे दस्तक दी ...........
अपनी अपनी दुनिया में रहने वाले हम ,
अपने इस नए एहसास को क्या नाम दे ,
मन से मन का मिलन है ये,
क्या ऐसा मान ले हम
क्यों तूने मेरे सुने दिल पे दस्तक दी .............
(....कृति.....अनु....)

2 comments:

pawan arora said...

ek naya ehssas ek nai payas chahato ki abhilasha...kalpana ki duniya bahut khub anu mam sach jindgi ki raah mai payar ka ehssas karati rachana hai

हरीश भट्ट said...

क्यों ???
ये प्रश्न तो हमेशा से ही अन्नुतरित ही रहा हैं
क्यों ???
ये प्रश्न शायद इसकी नियति हैं
(अनु)तरित रह जाना